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Sanskrit: प्राचीन कालस्य महत्वपूर्णं पुस्तकानि

प्राचीन कालस्य महत्वपूर्णं पुस्तकानि  🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 1-अस्टाध्यायी               पांणिनी 2-रामायण                    वाल्मीकि 3-महाभारत                  वेदव्यास 4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य 5-महाभाष्य                  पतंजलि 6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन 7-बुद्धचरित                  अश्वघोष 8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष 9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र 10- स्वप्नवासवदत्ता        भास 11-कामसूत्र                  वात्स्यायन 12-कुमारसंभवम्           कालिदास 13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास 15-मेघदूत                    कालिदास 16-रघुवंशम्                  कालिदास 17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास 18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि 19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त 20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक 21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट 22-वृहतसिंता               बरामिहिर 23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा 24-कथासरित्सागर        सोमदेव 25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु 26-मुद्राराक्षस           

अल्पाहारः(Tiffin)

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#अल्पाहारः(Tiffin) ✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 Hotel - उपाहारशाला Cantteen - उपाहारगृ हम् Tiffin center - उपाहारकेंद्रम् Breakfast - प्रातराशः Idly - शाल्यपूपः Puri - पूरिका Blackgram dosa - माषदोस Moong dosa - मुद् गदोसा Onion dosa - पलांडुदोसा Masala dosa - सोपस्करदोसा Wheet upama - गोधूमपिष्टिका Vada - वटिका Vada pav -वटिकरोटिका Samosa - समाशः Kachori - मुद् गपूर्णिका Pani puri - जलपूरीका Bread - मृदुरोटिका Cake - स्निग्धपिष्टकम् Biscuit - सुपिष्टकम् Burger - शाकरोटिका Pizza - पिष्टजा Fruit jam - फलपाकः Butter - नवनीतम् Milk cream - मस्तु Snacks - उपाहारः Mirchi bajji - मरीचभर्जी Brinjal bajji - वार्ताकभर्जी Alu bajji - आलुकभर्जी Chips - कासालुः Pakodi - पक्ववटी Palak pakodi - जीवन्तीपक्ववटी Tamarind chutney -    तिन्त्रिण्युपसेचनम् Groundnut power - कलायचूर्णम् Mirchi power - मरीचचूर्णम् Ginger chutney - आर्द्रकोपसेचनम् Sand witch - सम्पुटाशः Alu chips with pounded rice  - आलुपृथुकम् Tea centre - चायकेन्द्

कथा अकबरस्य, बिरबलस्य च

कथा अकबरस्य, बिरबलस्य च  आसीत् अकबरः इति प्रसिद्धः राजा | तस्य आस्थानकः चतुरः  बीरबलः | एकदा राजा बीरबलं पृच्छति | देवः सर्वत्र अस्ति इति  भवान् वदति | सः देवः भक्तान् रक्षितुं भूतलं किमर्थम् आगच्छति  | देवं परितः बहवः सेवकाः सन्ति | तान् सेवकान् किं न प्रेषयति   इति | बीरबलः किमपि न भणति | कानिचन दिनानि अतीतानि  | एकदा प्रातः राजा अकबरः बीरबलेन सह उद्यानं गच्छति |   तम् उभयतः अङ्गरक्षकाः अपि सन्ति | राजा अन्यैः जनैः साकं  जलाशयं प्राप्नोति | जलाशयस्य समीपे अकबरस्य पुत्रः कन्दुकेन   खेलति | पुत्रः जलाशये पतति | अकबरः पुत्रं रक्षितुं स्वयं जले.  निपतति | रक्षितं राजपुत्रं दृष्ट्वा बीरबलः वदति | हे महाराज  एतदेव देवस्य अवतरणस्य कारणम् | भवान् पुत्ररक्षणं सेवकैः न   कारयति किन्तु स्वयमेव करोति | तथैव देवः अपि स्वभक्तान् त्रातुं स्वयमेव अवतरति | तत् वचनं श्रुत्वा राजा अकबरः प्रसन्नः  बीरबलं पारितोषकेण संमानयति |😄😁👏🏻

कालिदासस्य मेघदूतम्

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मेघदूतम्  कालिदासः  कालिदासः                  पूर्वमेघ 1 कश्चित्‍कान्‍ताविरहगुरुणा स्‍वाधिकारात्‍प्रमत:      शापेनास्‍तग्‍ड:मितमहिमा वर्षभोग्‍येण भर्तु:। यक्षश्‍चक्रे जनकतनयास्‍नानपुण्‍योदकेषु      स्निग्‍धच्‍छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।। कोई यक्ष था। वह अपने काम में असावधान हुआ तो यक्षपति ने उसे शाप दिया कि वर्ष-भर पत्‍नी का भारी विरह सहो। इससे उसकी महिमा ढल गई। उसने रामगिरि के आश्रमों में बस्‍ती बनाई जहाँ घने छायादार पेड़ थे और जहाँ सीता जी के स्‍नानों द्वारा पवित्र हुए जल-कुंड भरे थे।                2 तस्मिन्‍नद्रो कतिचिदबलाविप्रयुक्‍त: स कामी       नीत्‍वा मासान्‍कनकवलयभ्रंशरिक्‍त प्रकोष्‍ठ: आषाढस्‍य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्‍टसानु       वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श।। स्‍त्री के विछोह में कामी यक्ष ने उस पर्वत पर कई मास बिता दिए। उसकी कलाई सुनहले कंगन के खिसक जाने से सूनी दीखने लगी। आषाढ़ मास के पहले दिन पहाड़ की चोटी पर झुके हुए मेघ को उसने देखा तो ऐसा जान पड़ा जैसे ढूसा मारने में मगन कोई हाथी हो।                3 तस्‍य स्थित्‍वा क

संस्कृतस्य परिचयः

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शिक्षक:, छात्र, अध्यक्ष:, सेवक:लेखक: प्रथम: वाक्यप्रकार:। अहं शिक्षक:अस्मि। अहं छात्र: अस्मि। अहम् अध्यक्ष: अस्मि। अहं शास्त्रज्ञ: अस्मि। अहं सेवक: अस्मि। अहं लेखक: अस्मि। द्वितीय: वाक्यरचनाप्रकार:। त्वं शिक्षक: असि। त्वं छात्र: असि। त्वं अध्यक्ष: असि। त्वं शास्त्रज्ञ: असि। त्वं सेवकः असि। त्वं लेखकः असि। तृतीयः वाक्यरचनाप्रकार:। सः शिक्षकः अस्ति। सः छात्रः अस्ति। सः अध्यक्षः अस्ति। सः शास्त्रज्ञः अस्ति। सः सेवकः अस्ति। सः लेखकः अस्ति।

मोनुस्वारः

पदाच्या शेवटी 'म् ' असेल व पुढे स्वर असेल तो अन्त्य 'म्' तसाच ठेवावा. किंवा तो पुढील स्वरात मिळवून त्यांचे पूर्ण अक्षर करावे जसे-(१)अहम् अस्मिता। किंवा अहमस्मि। (२) त्वम् उर्वशी। किंवा त्ममुर्वशी। पदान्ती 'म्' असून पुढे व्यंजन आल्यास 'म्'बद्दल त्यामागील अक्षरावर अनुस्वार लिहावा. जसे (१) त्वं शङ्कर:।( २) त्वं यमुना। वाक्याच्या शेवटीच्या पदान्ती 'म्' असेल तर तो तसाच ठेवावा. जसे (१) गजानन: अहम्।( २) सुरेश: त्वम्। 🙏🏽🙏🏽🙏🏽

धातु विभाग

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धातुओं का वर्गीकरण (भेद): धातु-विभाग संस्कृत की सभी धातुओं को 10 भागों में बांटा गया है। प्रत्येक भाग का नाम "गण (Conjugation) है। Dhatu Roop List भ्वादिगण अदादिगण ह्वादिगण (जुहोत्यादि) दिवादिगण स्वादिगण तुदादिगण तनादिगण रूधादिगण क्रयादिगण चुरादिगण 1. भ्वादिगण (प्रथम गण - First Conjugation) लट्, लोट्, लङ्ग्, विधिलिङ्ग् - इन चार लकारों में भ्वादिगी धातु के उत्तर में 'अ' होता है। 'अ' अंतिम वर्ण मे सदा युक्त होता है। लट्, लोट्, लङ्ग्, विधिलिङ्ग् लकार में निम्न धातुओं में भ्वादिगणीय परिवर्तन होते हैं - दृश् - पश्य, शद् - शीय, घ्रा - जिघ्र, इष् - इच्छ, दाण - यच्छ, ऋ - ऋच्छ, सद् - सीद्, गम् - गच्छ, ध्मा - धम्, स्था - तिष्ठ, सृ - धौ, पा - पिव्, यम - यच्छ, म्ना - मन आदि। भ्वादिगण की प्रमुख धातुएँ भू-भव् (होना, to be) गम्-गच्छ (जाना, to go) पठ् धातु (पढना, to read) दृश् (देखना, to see) पा-पिव् (पीना, to drink) जि (जीतना, to win) घ्रा-जिघ्र (सूँघना, to smell) पत् (गिरना, to fall) वस् (रहना/निवास करना, to dwell) वद् (बोलना, to speak) स्था-तिष्