Sanskrit: प्राचीन कालस्य महत्वपूर्णं पुस्तकानि

प्राचीन कालस्य महत्वपूर्णं पुस्तकानि  🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 1-अस्टाध्यायी               पांणिनी 2-रामायण                    वाल्मीकि 3-महाभारत                  वेदव्यास 4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य 5-महाभाष्य                  पतंजलि 6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन 7-बुद्धचरित                  अश्वघोष 8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष 9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र 10- स्वप्नवासवदत्ता        भास 11-कामसूत्र                  वात्स्यायन 12-कुमारसंभवम्           कालिदास 13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास 15-मेघदूत                    कालिदास 16-रघुवंशम्                  कालिदास 17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास 18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि 19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त 20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक 21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट 22-वृहतसिंता               बरामिहिर 23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा 24-कथासरित्सागर        सोमदेव 25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु 26-मुद्राराक्षस           

वेदाङ्गानि


वेदाङ्ग


वेद के ६ अंग हैं== शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष और कल्प।

वेदाङ्गानि
वेदाङ्गानि 

१. शिक्षा ~~  इसमें वेद का शुद्ध पाठ करने के लिये ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत, उदात्त, अनुदात्त, समाहार, स्वरित्,अनुनासिक आदि भेद से शिक्षा दी गई है, क्योंकि उच्चारणज्ञान के न होने से अनर्थ की प्राप्ति होती है। सर्ववेदों के लिए साधारण शिक्षा को श्री पाणिनी मुनि ने "अथ शिक्षां प्रवक्ष्यामि" इत्यादि से आरंम्भ करके नौ खंडों में प्रकाशित किया है और प्रत्येक वेद के लिए भिन्न-भिन्न शिक्षायें 'प्रातिशाख्य' नाम से अन्यान्य ऋषियों ने बनाई है।

२. व्याकरण ~~  वैदिक मंत्रों के शुद्ध उच्चारण के लिये, व्याकरण का मुख्य प्रयोजन है। प्राचीन काल में आठ प्रकार के व्याकरण थे। इनका पाणिनि ऋषि ने सारांश अपने अष्टाध्यायी व्याकरण में दिया है। इसके आरम्भ में भगवान् शङ्कर के डमरू से निकले १४ सूत्रों का वर्णन है। अष्टाध्यायी के सूत्रों पर कात्यायन ऋषि का वार्तिक है तथा पतञ्जलि ऋषि का महाभाष्य है। इन तीनों पर कैय्यट ऋषि ने विस्तार से टीका की है।

सूत्र, वार्तिक तथा भाष्य के लक्षण इस प्रकार से हैं~~

"अल्पाक्षरसन्दिग्धम् सारवद् विश्वतोमुखम्।
अस्तोभमनवद्यं च सूत्रं सूत्रविदो विदुः।।"
जिसमें बहुत थोड़े अक्षर हों, किन्तु अर्थ सन्देह रहित हो, विश्वतोमुखी अर्थ (गागर में सागर भरा हुआ) सूत्र के विशेषज्ञों ने उसे सूत्र कहा है।

वार्तिक ~~   "उक्तानुक्त दुरुक्तानां चिन्ता यत्र प्रवर्तते।
तं ग्रँथं वार्तिकं प्राहु: वार्तिकज्ञा: मनीषिणः।।"
मूल में कही हुई बात, न कही हुई बात तथा कठिन कही हुई बात की चिंता जहां होती है, वार्तिक के मर्म जानने वाले विद्वानों ने उसे वार्तिक कहा है।

भाष्य ~~ "सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र वाक्यै: सूत्रानुकारिभि:।
स्वपदानि च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदोविदुः।।"
सूत्रकार के वाक्यों के अनुसार जहां अर्थ किया जाता है तथा अपने द्वारा कहे शब्दों की व्याख्या की जाती है, भाष्य के जानने वाले विद्वानों ने उसे भाष्य कहा है।

३. निरुक्त ~~  शिक्षा, व्याकरण से वर्णों का शुद्ध उच्चारण होने पर भी वैदिक मंत्रों का अर्थ जानने की इच्छा से जो ग्रन्थ रचा जाता है, उसे निरुक्त कहते हैं। भगवान् यास्काचार्य ने १३ अध्यायों में निरुक्त की रचना की है। निरुक्त दो प्रकार का है= लौकिक निरुक्त, वैदिक निरुक्त ;  दोनों रचना इन्ही की है। लौकिक निरुक्त में महाभारत, पुराण, रामायण आती है, वैदिक निरुक्त में वैदिक देवता, द्रव्यपदार्थ के पर्यायवाची शब्दों का निरूपण है, इसको वैदिक निघण्टु भी कहते हैं। यह ५ अध्यायों में है। यास्काचार्य के अतिरिक्त अमरकोष, मेदिनी कोष आदि भी निरुक्त के अंतर्गत ही आते हैं।

४. छन्द ~~ इसके कर्ता पिंगल ऋषि हैं। यह शास्त्र भी दो प्रकार का है --  लौकिक, वैदिक।
वैदिक छन्दों में गायत्री, उष्णिग्, अनुष्टुप्, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती आदि सात छन्द हैं। लौकिक छन्दों में शार्दूलविक्रीड़ित सृग्धरा, विराट् आदि अनेक छन्द हैं।

५. ज्योतिष ~~ वैदिक काल के काल ज्ञान के लिए ; गर्गाचार्यादि अनेक ऋषियों ने अनेक प्रकार से इस शास्त्र से सम्बंधित ग्रन्थ लिखें हैं।

६. कल्प ~~  शास्त्रीय गुणों के उपसंहार में वैदिक अनुष्ठान का क्रमानुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिए कल्प-सूत्रों की रचना हुई है। चारों वेदों के भिन्न-भिन्न कल्पसूत्र हैं। अथर्ववेद से सम्बंधित के लिए बौधायन, आपस्तम्ब, कात्यायन आदि के सूत्र हैं तथा सामवेदी प्रयोगों के लिए लाटायन-ब्रिहियायन आदि सूत्र हैं।

 ये वेद के ६ अंग हुये। जैसे हमारे शरीर में मुख, नासिका, नेत्र, पैर, श्रोत्र आदि अंग हैं, वैसे ही व्याकरण भगवान् वेद का मुख, शिक्षा नासिका, निरुक्त चरण, छन्द श्रोत्र, कल्प हाथ, ज्योतिष नेत्र हैं।

                  ~~~~ पूज्य गुरुदेव भगवान् प्रणीत "गुरुवंश पुराण" के सत्ययुग खण्ड के प्रथम परिच्छेद के चतुर्थ अध्याय के आधार पर

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