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Showing posts from July, 2019

Sanskrit: प्राचीन कालस्य महत्वपूर्णं पुस्तकानि

प्राचीन कालस्य महत्वपूर्णं पुस्तकानि  🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 1-अस्टाध्यायी               पांणिनी 2-रामायण                    वाल्मीकि 3-महाभारत                  वेदव्यास 4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य 5-महाभाष्य                  पतंजलि 6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन 7-बुद्धचरित                  अश्वघोष 8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष 9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र 10- स्वप्नवासवदत्ता        भास 11-कामसूत्र                  वात्स्यायन 12-कुमारसंभवम्           कालिदास 13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास 15-मेघदूत                    कालिदास 16-रघुवंशम्                  कालिदास 17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास 18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि 19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त 20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक 21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट 22-वृहतसिंता               बरामिहिर 23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा 24-कथासरित्सागर        सोमदेव 25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु 26-मुद्राराक्षस           

Sanskrit: प्राचीन कालस्य महत्वपूर्णं पुस्तकानि

प्राचीन कालस्य महत्वपूर्णं पुस्तकानि  🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 1-अस्टाध्यायी               पांणिनी 2-रामायण                    वाल्मीकि 3-महाभारत                  वेदव्यास 4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य 5-महाभाष्य                  पतंजलि 6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन 7-बुद्धचरित                  अश्वघोष 8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष 9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र 10- स्वप्नवासवदत्ता        भास 11-कामसूत्र                  वात्स्यायन 12-कुमारसंभवम्           कालिदास 13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास 15-मेघदूत                    कालिदास 16-रघुवंशम्                  कालिदास 17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास 18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि 19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त 20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक 21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट 22-वृहतसिंता               बरामिहिर 23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा 24-कथासरित्सागर        सोमदेव 25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु 26-मुद्राराक्षस           

अल्पाहारः(Tiffin)

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#अल्पाहारः(Tiffin) ✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 Hotel - उपाहारशाला Cantteen - उपाहारगृ हम् Tiffin center - उपाहारकेंद्रम् Breakfast - प्रातराशः Idly - शाल्यपूपः Puri - पूरिका Blackgram dosa - माषदोस Moong dosa - मुद् गदोसा Onion dosa - पलांडुदोसा Masala dosa - सोपस्करदोसा Wheet upama - गोधूमपिष्टिका Vada - वटिका Vada pav -वटिकरोटिका Samosa - समाशः Kachori - मुद् गपूर्णिका Pani puri - जलपूरीका Bread - मृदुरोटिका Cake - स्निग्धपिष्टकम् Biscuit - सुपिष्टकम् Burger - शाकरोटिका Pizza - पिष्टजा Fruit jam - फलपाकः Butter - नवनीतम् Milk cream - मस्तु Snacks - उपाहारः Mirchi bajji - मरीचभर्जी Brinjal bajji - वार्ताकभर्जी Alu bajji - आलुकभर्जी Chips - कासालुः Pakodi - पक्ववटी Palak pakodi - जीवन्तीपक्ववटी Tamarind chutney -    तिन्त्रिण्युपसेचनम् Groundnut power - कलायचूर्णम् Mirchi power - मरीचचूर्णम् Ginger chutney - आर्द्रकोपसेचनम् Sand witch - सम्पुटाशः Alu chips with pounded rice  - आलुपृथुकम् Tea centre - चायकेन्द्

कथा अकबरस्य, बिरबलस्य च

कथा अकबरस्य, बिरबलस्य च  आसीत् अकबरः इति प्रसिद्धः राजा | तस्य आस्थानकः चतुरः  बीरबलः | एकदा राजा बीरबलं पृच्छति | देवः सर्वत्र अस्ति इति  भवान् वदति | सः देवः भक्तान् रक्षितुं भूतलं किमर्थम् आगच्छति  | देवं परितः बहवः सेवकाः सन्ति | तान् सेवकान् किं न प्रेषयति   इति | बीरबलः किमपि न भणति | कानिचन दिनानि अतीतानि  | एकदा प्रातः राजा अकबरः बीरबलेन सह उद्यानं गच्छति |   तम् उभयतः अङ्गरक्षकाः अपि सन्ति | राजा अन्यैः जनैः साकं  जलाशयं प्राप्नोति | जलाशयस्य समीपे अकबरस्य पुत्रः कन्दुकेन   खेलति | पुत्रः जलाशये पतति | अकबरः पुत्रं रक्षितुं स्वयं जले.  निपतति | रक्षितं राजपुत्रं दृष्ट्वा बीरबलः वदति | हे महाराज  एतदेव देवस्य अवतरणस्य कारणम् | भवान् पुत्ररक्षणं सेवकैः न   कारयति किन्तु स्वयमेव करोति | तथैव देवः अपि स्वभक्तान् त्रातुं स्वयमेव अवतरति | तत् वचनं श्रुत्वा राजा अकबरः प्रसन्नः  बीरबलं पारितोषकेण संमानयति |😄😁👏🏻

कालिदासस्य मेघदूतम्

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मेघदूतम्  कालिदासः  कालिदासः                  पूर्वमेघ 1 कश्चित्‍कान्‍ताविरहगुरुणा स्‍वाधिकारात्‍प्रमत:      शापेनास्‍तग्‍ड:मितमहिमा वर्षभोग्‍येण भर्तु:। यक्षश्‍चक्रे जनकतनयास्‍नानपुण्‍योदकेषु      स्निग्‍धच्‍छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।। कोई यक्ष था। वह अपने काम में असावधान हुआ तो यक्षपति ने उसे शाप दिया कि वर्ष-भर पत्‍नी का भारी विरह सहो। इससे उसकी महिमा ढल गई। उसने रामगिरि के आश्रमों में बस्‍ती बनाई जहाँ घने छायादार पेड़ थे और जहाँ सीता जी के स्‍नानों द्वारा पवित्र हुए जल-कुंड भरे थे।                2 तस्मिन्‍नद्रो कतिचिदबलाविप्रयुक्‍त: स कामी       नीत्‍वा मासान्‍कनकवलयभ्रंशरिक्‍त प्रकोष्‍ठ: आषाढस्‍य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्‍टसानु       वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श।। स्‍त्री के विछोह में कामी यक्ष ने उस पर्वत पर कई मास बिता दिए। उसकी कलाई सुनहले कंगन के खिसक जाने से सूनी दीखने लगी। आषाढ़ मास के पहले दिन पहाड़ की चोटी पर झुके हुए मेघ को उसने देखा तो ऐसा जान पड़ा जैसे ढूसा मारने में मगन कोई हाथी हो।                3 तस्‍य स्थित्‍वा क

संस्कृतस्य परिचयः

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शिक्षक:, छात्र, अध्यक्ष:, सेवक:लेखक: प्रथम: वाक्यप्रकार:। अहं शिक्षक:अस्मि। अहं छात्र: अस्मि। अहम् अध्यक्ष: अस्मि। अहं शास्त्रज्ञ: अस्मि। अहं सेवक: अस्मि। अहं लेखक: अस्मि। द्वितीय: वाक्यरचनाप्रकार:। त्वं शिक्षक: असि। त्वं छात्र: असि। त्वं अध्यक्ष: असि। त्वं शास्त्रज्ञ: असि। त्वं सेवकः असि। त्वं लेखकः असि। तृतीयः वाक्यरचनाप्रकार:। सः शिक्षकः अस्ति। सः छात्रः अस्ति। सः अध्यक्षः अस्ति। सः शास्त्रज्ञः अस्ति। सः सेवकः अस्ति। सः लेखकः अस्ति।

मोनुस्वारः

पदाच्या शेवटी 'म् ' असेल व पुढे स्वर असेल तो अन्त्य 'म्' तसाच ठेवावा. किंवा तो पुढील स्वरात मिळवून त्यांचे पूर्ण अक्षर करावे जसे-(१)अहम् अस्मिता। किंवा अहमस्मि। (२) त्वम् उर्वशी। किंवा त्ममुर्वशी। पदान्ती 'म्' असून पुढे व्यंजन आल्यास 'म्'बद्दल त्यामागील अक्षरावर अनुस्वार लिहावा. जसे (१) त्वं शङ्कर:।( २) त्वं यमुना। वाक्याच्या शेवटीच्या पदान्ती 'म्' असेल तर तो तसाच ठेवावा. जसे (१) गजानन: अहम्।( २) सुरेश: त्वम्। 🙏🏽🙏🏽🙏🏽

धातु विभाग

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धातुओं का वर्गीकरण (भेद): धातु-विभाग संस्कृत की सभी धातुओं को 10 भागों में बांटा गया है। प्रत्येक भाग का नाम "गण (Conjugation) है। Dhatu Roop List भ्वादिगण अदादिगण ह्वादिगण (जुहोत्यादि) दिवादिगण स्वादिगण तुदादिगण तनादिगण रूधादिगण क्रयादिगण चुरादिगण 1. भ्वादिगण (प्रथम गण - First Conjugation) लट्, लोट्, लङ्ग्, विधिलिङ्ग् - इन चार लकारों में भ्वादिगी धातु के उत्तर में 'अ' होता है। 'अ' अंतिम वर्ण मे सदा युक्त होता है। लट्, लोट्, लङ्ग्, विधिलिङ्ग् लकार में निम्न धातुओं में भ्वादिगणीय परिवर्तन होते हैं - दृश् - पश्य, शद् - शीय, घ्रा - जिघ्र, इष् - इच्छ, दाण - यच्छ, ऋ - ऋच्छ, सद् - सीद्, गम् - गच्छ, ध्मा - धम्, स्था - तिष्ठ, सृ - धौ, पा - पिव्, यम - यच्छ, म्ना - मन आदि। भ्वादिगण की प्रमुख धातुएँ भू-भव् (होना, to be) गम्-गच्छ (जाना, to go) पठ् धातु (पढना, to read) दृश् (देखना, to see) पा-पिव् (पीना, to drink) जि (जीतना, to win) घ्रा-जिघ्र (सूँघना, to smell) पत् (गिरना, to fall) वस् (रहना/निवास करना, to dwell) वद् (बोलना, to speak) स्था-तिष्

Sanskrit words

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Sanskrit Word List The purpose of this list is to give a rough idea of the Sanskrit language. The words listed below are not the most common words, but a broad sampling of words. See the Word Lists page for more details. English Sanskrit संस्कृतम् (saṃskṛtam) I अहम् (ahám) you (singular) त्वम् (tvám) he स (sá) we वयम् (vayám) you (plural) यूयम् (yūyám) they ते (té) this इदम् (idám) that तत् (tát) here अत्र (átra) there तत्र (tátra) who क (ká) what किम् (kím) where कुत्र (kútra) when कदा (kadā́) how कथम् (kathám) not न (ná) all सर्व (sárva) many बहु (bahú) some किञ्चिद् (kíñcid) few अल्प (álpa) other अन्य (anyá) one एक (éka) two द्वि (dví) three त्रि (trí) four चतुर् (cátur) five पञ्ज (páñcan) big महत् (mahát) long दीर्घ (dīrghá) wide उरु (urú) thick घन (ghaná) heavy गुरु (gurú) small अल्प (álpa) short ह्रस्व (hrasvá) narrow अंहु (aṃhú) thin तनु (tanú) woman स्त्री (strī́) man (adult male) पुरुष (púru

देवभाषा संस्कृतम्

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विश्वभाषा संस्कृतम् १. सरलभाषा संस्कृतं सरसभाषा संस्कृतम् । सरससरलमनोज्ञम ङ्गलदेवभाषा संस्कृतम् ॥ २. मधुरभाषा संस्कृतं मृदुलभाषा संस्कृतम् । मृदुलमधुरमनोहरामृततुल्यभाषा संस्कृतम् ॥ ३. देवभाषा संस्कृतं वेदभाषा संस्कृतम् । भेदभावविनाशकं खलु दिव्यभाषा संस्कृतम् ॥ ४. अमृतभाषा संस्कृतम् अतुलभाषा संस्कृतम् । सुकृतिजनहृदि परिलसितशुभवरदभाषा संस्कृतम् ॥ ५. भुवनभाषा संस्कृतं भवनभाषा संस्कृतम् । भरतभुवि परिलसितकाव्यमनोज्ञभाषा संस्कृतम् ॥ ६. शस्त्रभाषा संस्कृतं शास्त्रभाषा संस्कृतम् । शस्त्रशास्त्रभृदार्षभारतराष्ट्रभाषा संस्कृतम् ॥ ७. धर्मभाषा संस्कृतं कर्मभाषा संस्कृतम् । धर्मकर्मप्रचोदकं खलु विश्वभाषा संस्कृतम् ॥  .मातृभाषा भवेत् संस्कृतं कामये          विश्वभाषा भवेत् संस्कृतं भावये। लोकभाषा भवेत् संस्कृतं भारते          भारतं राजतां संस्कृते हे सखे।।

तुमन्त प्रत्ययः

                      क्रियापद                        ******   [ ' तुम ' प्रत्ययान्त हेत्वर्थक रूप ] १, गन्तुम् = जाने के लिये २, पातुम् = पीने के लिये । ३, पठितुम् = पढ़ने के लिये । ४, द्रष्टुम् = देखने के लिये । ५, क्रीडितुम् = खेलने के लिये । ६, वक्तुम् = बोलने के लिये । ७, धावितुम् = दौड़ने के लिये । ८, पतितुम् = गिरने को लिये । ९, आगन्तुम् = आने के लिये । १०, लिखितुम् = लिखने के लिये । ११, स्थातुम् = ठहरने के लिये । १२,  भक्षयितुम् = खाने के लिये । १३,  कर्तुम् = करने के लिये । १४,  भवितुम् = होने के लिये । १५, अर्चितुम् = पूजने के लिये । १६, खेलितुम् = खेलने के लिये । १७, चलितुम् = चलने के लिये । १८, धारयितुम् = धारण करने के लिये । १९, कथयितुम् = कहने के लिये । २०, क्षालयितुम् = धोने के लिये २१, पालयितुम् = पालन करने के लिये । २२,  तुलयितुम् = तोलने के लिये । निम्नांकित वाक्यों का हिन्दी मे अनुवाद कीजिए :--- १,  अहं तत्र स्थातुं गच्छामि । २, दुग्धं पातुं कः न इच्छति ? ३, सः पठितुं शालां गच्छति ४,  उद्यानं द्रष्टुं सः तत्र गमिष्यति । ५, किं

वेदाङ्गानि

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वेदाङ्ग वेद के ६ अंग हैं== शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष और कल्प। वेदाङ्गानि   १. शिक्षा ~~  इसमें वेद का शुद्ध पाठ करने के लिये ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत, उदात्त, अनुदात्त, समाहार, स्वरित्,अनुनासिक आदि भेद से शिक्षा दी गई है, क्योंकि उच्चारणज्ञान के न होने से अनर्थ की प्राप्ति होती है। सर्ववेदों के लिए साधारण शिक्षा को श्री पाणिनी मुनि ने "अथ शिक्षां प्रवक्ष्यामि" इत्यादि से आरंम्भ करके नौ खंडों में प्रकाशित किया है और प्रत्येक वेद के लिए भिन्न-भिन्न शिक्षायें 'प्रातिशाख्य' नाम से अन्यान्य ऋषियों ने बनाई है। २. व्याकरण ~~  वैदिक मंत्रों के शुद्ध उच्चारण के लिये, व्याकरण का मुख्य प्रयोजन है। प्राचीन काल में आठ प्रकार के व्याकरण थे। इनका पाणिनि ऋषि ने सारांश अपने अष्टाध्यायी व्याकरण में दिया है। इसके आरम्भ में भगवान् शङ्कर के डमरू से निकले १४ सूत्रों का वर्णन है। अष्टाध्यायी के सूत्रों पर कात्यायन ऋषि का वार्तिक है तथा पतञ्जलि ऋषि का महाभाष्य है। इन तीनों पर कैय्यट ऋषि ने विस्तार से टीका की है। सूत्र, वार्तिक तथा भाष्य के लक्षण इस प्रकार से हैं~

बाराखडी

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बाराखडी क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं खः ग गा गि गी गु गू गे गै गो गौ गं गः घ घा घि घी घु घू घे घै घो घौ घं घः ङ ङा ङि ङी ङु ङू ङे ङै ङो ङं ङः च चा चि ची चु चू चे चै चो चौ चं चः छ छा छि छी छु छू छे छै छो छौ छं छः ज जा जि जी जु जू जे जै जो जौ जं जः झ झा झि झी झु झू झे झै झो झौ झं झः ञ ञा ञि ञी ञु ञू ञे ञै ञो ञौ ञं ञः ट टा टि टी टु टू टे टै टो टौ टं टः ठ ठा ठि ठी ठु ठू ठे ठै ठो ठौ ठं ठः ड डा डि डी डु डू डे डै डो डौ डं डः ढ ढा ढि ढी ढु ढू ढे ढै ढो ढौ ढं ढः ण णा णि णी णु णू णे णै णो णौ णं णः त ता ति ती तु तू ते तै तो तौ तं तः थ था थि थी थु थू थे थै थो थौ थं थः द दा दि दी दु दू दे दै दो दौ दं दः ध धा धि धी धु धू धे धै धो धौ धं धः न ना नि नी नु नू ने नै नो नौ नं नः प पा पि पी पु पू पे पै पो पौ पं पः फ फा फि फी फु फू फे फै फो फौ फं फः ब बा बि बी बु बू बे बै बो बौ बं बः भ भा भि भी भु भू भे भै भो भौ भं भः म मा मि मी मु मू मे मै मो मौ मं मः य या यि यी यु यू ये यै यो यौ यं यः र रा रि री रु रू रे रै रो

Verbal Forms Of Some Commonplace Verbal Roots (धातु)

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Verbal Forms Of Some Commonplace Verbal Roots धातु, Verbal Root धातु  Meaning  Verbal Forms 1  गम्  To Go  गच्छामि गच्छावः गच्छामः गच्छसि गच्छथः गच्छथ गच्छति गच्छतः गच्छन्ति 2  वद्  To Say, To Speak  वदामि वदावः वदामः वदसि वदथः वदथ वदति वदतः वदन्ति 3  आ + गम्  To Come  आगच्छामि आगच्छावः आगच्छामः आगच्छसि आगच्छथः आगच्छथ आगच्छति आगच्छतः आगच्छन्ति 4  प्रति  + गम्  To Go Towards, To Go Unto प्रतिगच्छामि प्रतिगच्छावः प्रतिगच्छामः प्रतिगच्छसि प्रतिगच्छथः प्रतिगच्छथ प्रतिगच्छति प्रतिगच्छतः प्रतिगच्छन्ति 5  प्रति + आ + गम्  To Return  प्रत्यागच्छामि प्रत्यागच्छावः प्रत्यागच्छामः प्रत्यागच्छसि प्रत्यागच्छथः प्रत्यागच्छथ प्रत्यागच्छति प्रत्यागच्छतः प्रत्यागच्छन्ति 6  कृ  To Do  करोमि कुर्वः कुर्मः करोषि कुरुथः कुरुथ करोति कुरुतः कुर्वन्ति 7  खाद्  To Eat  खादामि खादावः खादामः खादसि खादथः खादथ खादति खादतः खादन्ति

संस्कृत भाषा बोलने के चिकित्सीय लाभ

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संस्कृत भाषा बोलने के        चिकित्सीय लाभ वदतु संस्कृतं वदतु संस्कृतम्! संस्कृत में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं जो उसे अन्य सभी भाषाओं से उत्कृष्ट और विशिष्ट बनाती हैं। ०१. अनुस्वार (अं ) और विसर्ग(अ:) :- संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग। पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं — यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि। और नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं— यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि। अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है। जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं। उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भौंरे की तरह गुंजन करना होता है, और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: ज

संगणक-विषयक-शब्दावली(Computer)

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संगणक-विषयक-शब्दावली (1)ID.— परिचयपत्रम् (2)Data – टंकितांश: (3) Edit – सम्पादनम् (4)Keyboard – कुंचिपटलम् (5) Timeline – समयरेखा (6) Login – प्रवेश: (7)Share - वितरणम्, प्रसारणम् (8) Laptop – अंकसंगणकम् (9) Search - अन्वेषणम् (10)Default - पूर्वनिविष्ठम् (11)Input – निवेश: (12)Output - फलितम् (13)Block – अवरोध: (14)Display – प्रदर्शनम् / विन्यास: (15)Wallpaper - भीत्तिचित्रम् (16)Theme – विषयवस्तु: (17)User – उपभोक्ता (18) Smart phone - कुशलदूरवाणी (19)Tag - चिह्नम् (20)Setup – प्रतिष्ठितम् (21)Install - प्रस्थापना / प्रतिस्थापनम् (22)Privacy - गोपनीयता (23)Manual – हस्तक्रिया (24)Accessibility - अभिगम्यता (25)Error – त्रुटि: (26)Pass word – गूढशब्द: (27) Code no. - कूटसंख्या (28) Pen drive - स्मृतिशलाका   (1.) क्लास रूमः--कक्ष्या (2.) बेंच (पुस्तक रखने की)---दीर्घोत्पीठिका, (3.) बेंच (बैठने की)---दीर्घपीठिका, (4.) मेज---उत्पीठिका, (5.) कुर्सीः--आसन्दः, (6.) बैगः--स्यूतः, (7.) किताब--पुस्तकम्, (8.) कलम-